Architectural ruins

Raja Raghunath Mahal,Hastinapur,Meerut

मेरठ (हस्तिनापुर) : महाभारत से लेकर आजादी की जंग तक हस्तिनापुर की धरती पर अनेक इतिहास रचे गए। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुए कई आंदोलनों की रूपरेखा यहां तैयार हुई। क्रांतिकारियों ने आजादी की जंग को जारी रखने के लिए पांडव टीला स्थित राजा रघुनाथ महल में कई बार शरण ली। झांसी की रानी के मामा रघुनाथ क्रांति के बाद यहां आकर रूके और उन्होंने ही इस महल का निर्माण करवाया। इस महल में ऐसी दो गुफाएं है जिसमें एक साथ 50 लोग बैठकर रणनीति तैयार कर सकते थे। सन 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के मामा राजा रघुनाथ नायक मराठे अपने साथियों के साथ अंग्रेजों से छिपने के लिए हस्तिानापुर पहुंचे। वह लंबे समय तक यहीं रहे और इसी दौरान उन्होंने इस महल का निर्माण कराया। उनके नाम पर ही महल का नाम रघुनाथ महल पड़ा। महल के समीप साधना स्थल भी है। यहां दो गुप्त गुफाएं भी हैं। पांडव ब्लाक के आरक्षित जंगल के बीच पांडव टीला उल्टा खेड़ा पर लगभग 40 फीट ऊंचे टीले पर रघुनाथ महल स्थित है। वर्ष 1919 में संत सुमेर सिंह काली कमली वालों ने महल की कमान संभाली। उन्होंने यहां वेद प्रचार की नींव डाली। वर्ष 1933 में संत सुमेर सिंह ब्रह्मलीन हुए। फिर उनके शिष्य ब्रह्मचारी डा. स्वामी महंत महल के संचालक बने। उन्होंने भी वेदों का प्रचार व आजादी की अलख जलाए रखी। ब्रिटिश हुकुमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री भी एक माह के लिए इस महल में रहे। सन 1942 तक इसी महल में युवाओं को आजादी की जंग के लिए तैयार किया जाता था। भारत छोड़ो आंदोलन के समय यहां क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने छापे भी मारे, लेकिन महल में बनी गुफाओं ने क्रांतिकारियों की रक्षा की। स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारी शालीग्राम, चंद्रशेखर आजाद, शिव वर्मा समेत कई अन्य यहां आकर ठहरे। महल की गुफाओं में एक साथ दो दर्जन लोग आराम कर सकते हैं, और यह मौसम के अनुकूल रहती है केवल हवा के लिए एक झरोखा है।



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