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NAWAB OF SARDHANA JA FISHAN KHAN SAHAB सरधना के नवाब, अफगान योद्धा जाँ-फ़िशां खान साहब,सरधना,मेरठ.

सरधना के नवाब, अफगान योद्धा जाँ-फ़िशां खान साहब,सरधना,मेरठ. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कुछ ही स्वायत्त राज्य थे। जिन्हें "रियासत" कहते थे। साधारण भाषा में कहा जाए तो राजाओं व शासकों के स्वामित्व में स्वतन्त्र इकाइयों को रियासत कहा जाता था। ये रियासते ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं की जाती थी परंतु इनके शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। इन्ही रियासतों में से एक थी सरधना रियासत। यहाँ पर ब्रिटिशों द्वारा कई अफ़गानियों को काबुल के पास पागमन से अपनी वफादारी के लिए मेरठ के सरधना में पुनः स्थापित किया गया था। सरधना में पुनः स्थापित अफ़गानी “सरधना के नवाब” के नाम से जाने जाते है, इन्होंने बेगम समरू की मृत्यु के कई सालों बाद तक यहां शासन किया था। बक़ौल ख़ानदान की छटी पीढ़ी के नवाब मुहम्मद अली शाह साहब के ,महाराजा रणजीत सिंह जी ने भी इनके पुरखों को “नवाब बहादुर” की उपाधि से नवाज़ा था, वह बताते हैं कि उनका ख़ानदान हज़रत मोहम्मद साहब की वंशावली से है। सैयद मोहम्मद शाह जिन्हें उनके ख़िताब जाँ-फ़िशां खान के रूप में जाना जाता है, 19वीं शताब्दी के अफगान योद्धा थे। ये काबुल के पास पागमन के निवासी थे। उन्होंने प्रथम ऐंग्लो-अफ़गान(Anglo-afghan) युद्ध (1839-42) में भाग लिया था, जिसमें इन्होंने ब्रिटिश सरकार के अधिकारी अलेक्जेंडर बार्न्स(Alexander Barnes) को सहायता प्रदान की थी। इसके बाद इन्हे काबुल से हिंदुस्तान बुलाया गया और ये ब्रिटिश सरकार की मदद से सरधना में बस गये जहां इन्होंने बेगम समरू की कई जायदाद नीलामी में ख़रीदी, ब्रिटिश सरकार द्वारा खान को सरधना के नवाब का खिताब दिया गया था।इस खिताब को उन्हे दिये जाने का उल्लेख ब्रिटिश औपनिवेशिक विद्वान सर रोपर लेथब्रिज ने उनकी द गोल्डन बुक ऑफ इंडिया (The Golden Book of India) में किया है अफ़ग़ान युध में प्रतिष्ठित सेवाओं के लिए ब्रिटिश सरकार ने मोहम्मद शाह को जाँ -फ़िशां खान के खिताब से नवाजा। इसी कारण केवल जाँ-फ़िशां खान के वंशज ही सरधना के नवाबों के रूप में जाने जाते है। आज यहाँ जाँ-फ़िशां खान की छटी पीढ़ी के बतौर नवाब ऐनुद्दीन शाह,नवाब मोहम्मद अली शाह तथा मदीहा शाह रसूल जो की मेरठ के एक प्रसिद्ध मदीहा इमेज कंसल्टिंग स्कूल की संचालिका के रूप में मौजूद हैं जिन्होंने आज भी अपने बुजुर्गों की शान को महफ़ूज़ रखा हैं ।आपके ताऊजी आगा मोइउद्दीन साहब आइ ॰जी॰ उत्तर प्रदेश (1978-80) रहे। उस समय यह अहोदा आज के डी ॰जी ॰पी के समकक्ष होता था। मशहूर फ़िल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह भी इसी ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते हैं , वे जनाब ऐनुद्दीन साहब एवं मोहम्मद अली साहब की सगी बुआ के बेटे हैं । नसीरुद्दीन साहब के बड़े भाई ले॰जनरल जमीरुद्दीन साहब डेप्युटी चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ रहने के पश्चात् अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उप-कुलपति रहे। आप दोनो भाई भी अजब शख़्शियत के मालिक हैं बड़े भाई ऐनुद्दीन साहब से मिलकर आपको आभास होगा कि शालीन, सौम्य एवम् सभ्य व्यक्तित्व क्या होता है और अली भाई से मिलकर सादगी एवं अपनेपन का ग़ज़ब का अहसास । आप दोनो की शान में ये अल्फ़ाज़ पेश करूँगा : “किसी को राह दिखलाई, किसी का ज़ख्म सहलाया। किसी के अश्क जब पोंछे, इबादत का मज़ा आया । Sardhana



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