छिपा हुआ रतन: स्वयंभु श्री श्यामेश्वर महादेव मंदिर की कहानी
छपकौली गांव, बाबूगढ़ जिला, हापुड़ में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसे स्वयंभु श्री श्यामेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शारदा नदी के किनारे स्थित है, जो आजकल काली नदी कहलाती है। यहाँ का शांत वातावरण और हरे-भरे दृश्य, इस पवित्र स्थान की दिव्यता को और बढ़ाते हैं।
एक समय की बात है, जब इस मंदिर के चारों ओर एक रहस्यमय aura फैला हुआ था। यह मंदिर 9वीं शताब्दी का है, और कहा जाता है कि प्रसिद्ध राजा हरिश्चंद्र यहाँ पूजा करने आया करते थे। लेकिन इस मंदिर की असली कहानी एक लकड़हारे से शुरू होती है।
एक सुबह, लकड़हारा लकड़ी काटने के लिए जंगल में गया। जब उसने एक खजूर के पेड़ को काटने की कोशिश की, तो उसकी कुल्हाड़ी एक अज्ञात पत्थर से टकराई। इस टकराहट से एक अद्भुत आवाज सुनाई दी, जिसने उसे चौंका दिया। उत्सुकता से उसने मिट्टी हटाई और देखा कि वहाँ एक शिवलिंग प्रकट हुआ है। इस अद्भुत घटना ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया और वह शिवलिंग को "खजूर वाले बाबा" के नाम से पुकारने लगा।
समय के साथ, महात्माओं ने इस शिवलिंग का नामकरण किया और यह मंदिर श्रद्धा का केंद्र बन गया। लेकिन इतिहास के इस अद्भुत रतन के प्रति उपेक्षा भी हुई। यह मंदिर पुरातत्वविदों और इतिहासकारों की नजरों से ओझल रहा, जिसके कारण इसकी कई बेहतरीन नक्काशी और मूर्तियाँ भी सुरक्षित नहीं रह सकीं।
एक दिन, शंकराचार्य जी ने इस मंदिर का दौरा किया और गंगा नहर की खुदाई के दौरान निकाली गई मूर्तियों को यहाँ लाने का कार्य किया। इनमें एक नटराज की मूर्ति भी शामिल थी, जो समय के साथ जर्जर हो रही थी। लेकिन इस मंदिर का महत्त्व सिर्फ उसकी मूर्तियों में नहीं, बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में भी है।
इस गांव के हर घर में दिव्यानंद तीर्थ महाराज का छायाचित्र लगा हुआ है, जो उनकी उपस्थिति का स्मरण कराता है। उन्होंने 1979 में इस स्थान का दौरा किया । उनका कार्य और योगदान आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
समय बीतता गया, लेकिन इस मंदिर की सुंदरता और महत्व को किसी ने नहीं भुलाया। स्थानीय सरकार और समुदाय को इस उत्कृष्ट कृति की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसकी दिव्यता और सांस्कृतिक गहराई को समझ सकें।
यही है स्वयंभु श्री श्यामेश्वर महादेव मंदिर की कहानी, जो न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक सांस्कृतिक खजाना भी है। यह मंदिर एक छिपा हुआ रतन है, जो अपनी अद्भुत कहानियों और ऐतिहासिक महत्व के साथ, सदियों से श्रद्धालुओं का स्वागत कर रहा है।
श्री आकाश चौधरी को बहुत-बहुत धन्यवाद, जिन्होंने मुझे इस मंदिर के बारे में बताया और मुझे इस दिव्य स्थान पर ले गए।
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