Architectural ruins

विजय मंडल किला,दिल्ली.

विजय मंडल किला,दिल्ली. दिल्ली एक अजीब व ग़रीब शहर है। न जाने कितने ही इतिहास के राज़ इस शहर में दफन हैं। 8 वि सदी से दिल्ली किसी न किसी साम्राज्य की राजधानी रही है। तौमर, राजपूत , चौहान साम्राज्यों से लेकर खिलजी तुग़लक़ और मुग़ल सल्तनत तक इसी शहर में आबाद हुईं, और पीछे रह गए उनके वक़्त के आसार। लाल किला, जमा मस्जिद, क़ुतुब मीनार वगैरह तो खूब जानी पहचानी जगहें हैं। लेकिन हमारी कोशिश है दिल्ली के छिपे हुए इतिहास को संकलित करना। इसी लिए आज हम दिल्ली के एक ऐसे ही खोये हुए क़िले के इतिहास की तरफ आपको ले चलेंगे। जंगली घांसों के बीच खड़ी इस ईमारत की कहानी दिलचस्प है । आइये बताते हैं कि क्या है बिजय मंडल क़िले का इतिहास। किले के निर्माण से सम्बंधित पुरातत्व विभाग के पास कोई ख़ास जानकारी नहीं है , हालाँकि मुहम्मद बिन तुग़लक़ से इस किले के सम्बन्ध होने के काफी सबूत हैं। प्रमुख धारणा यह है कि इस क़िले का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने कराया था। लेकिन अलाउद्दीन के फ़ौरन बाद ही खिलजी सल्तनत का पतन शुरू हो गया। 1320 में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने दिल्ली पर अपना शासन स्थापित किया और इसी क़िले को सबसे पहले अपना घर बनाया। इब्न ए बतूता अपने यात्रा वृतांत में इस क़िले के बारे में लिखते हैं कि दरवाज़े से अंदर दाखिल होते ही हज़ार सुतून यानि हज़ार पिलर की एक ईमारत है, जहाँ वो हॉल है जिसमे सुल्तान अपनी प्रजा से मुखातिब होते थे। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह क्षेत्र अरावली पहाड़ियों का हिस्सा था इसी वजह से वह ऊंचाई पर था। किले का निर्माण इसी लिए यहाँ कराया गया ताकी पूरे शहर को किले से देखा जा सके। किले की संरचना काफी उलझाने वाली है। 14 वीं सदी के इस क़िले में किस जगह क्या था इस बात के स्पष्ट आसार नहीं है ,हालाँकि जो ईमारत बची है वो भी देखने योग्य है। यहाँ मौजूद बड़े गुम्बद की ईमारत अपने आप में भव्य है। क़िले के ऊपर एक अष्टकोण अकार का छोटा सा कमरा है, इसका असल उद्देश्य क्या था इस का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। हालाँकि यह कहा जा सकता है की सुल्तान यहाँ से खड़े हो कर अपने शहर को देखा करते थे। आज भी इस जगह से आबादी का एक अच्छा खासा नज़ारा देखने को मिलता है। अधिकतर क़िला अब जंगल में तब्दील हो चुका है। क़िले से ही जुडी है शाही मस्जिद जहाँ सूफी हज़रतशेख हसन ताहिर की कब्र और उनके वंशजो का क़ब्रिस्तान मौजूद है। क़िले में दाखिल होने का यह एक प्रमुख दरवाज़ा है। मालूम होता है की यह मस्जिद क़िले की ही मस्जिद थी। क़िले के आस पास पानी भी था जिसका आसार यह छोटे पुल नुमा आकृतियां हैं। हालाँकि आज यह किला खंडहर बन चुका है लेकिन शहर के शोर शराबे से दूर कुछ वक़्त शान्ति से किसी ऐतिहासिक ईमारत की गोद में गुज़ारने के लिए यह एक मुनासिब जगह है। हौज़ ख़ास मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूरी पर यह क़िला स्तिथ है।

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