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मिठाई की खासियत से नाम पड़ा 'बाजार पेड़ामल',मेरठ.

मिठाई की खासियत से नाम पड़ा 'बाजार पेड़ामल',मेरठ. हजारों साल पहले किले के अंदर बसा था मेरठ। इसके चारों ओर थी गहरी खाई। हर दौर में बुलंदियों को छूने वाला अपना मेरठ बना, बिगड़ा मगर फिर उठ खड़ा हुआ, नये जोश के साथ नई ऊंचाइयों को छूने के लिए। वक्त ने करवट बदली तो पुराने शहर में भी कसमसाहट होने लगी। अंगड़ाइयों लेकर ये और फैलने को बेताब था। नतीजा गहरी खाई और किले का फासला मिटने लगा। देखते ही देखते किले में बसा मेरठ दरवाजों में महफूज हुआ। राजाओं के बाद ये दौर था मुगल बादशाहों का जिन्होंने शहर के मिजाज को जान इसे विस्तार दिया। अंग्रेजों ने इसकी सरहदें और बढ़ाई। बाजार पेड़ामल कभी पुराने शहर का आर्थिक केंद्र हुआ करता था। इतिहास की तफसील इसे पुराने शहर का पहला बाजार तो बताती ही है साथ ही देशभर के प्रमुख व्यापारिक केंद्र के दर्ज से भी नवाजती है। सूत, कपड़ा, किराना, भवन निर्माण सामग्री के साथ ही इस बाजार में जरूरत की हर चीज मिलती थी। देशभर से व्यापारी यहां आते थे। शहर के नाम की कहानी पुराने बाशिंदों के साथ रूख्सत हो गयी। फिर भी खंगालने पर पता चलता है कि यहां की मिठाई की खुशबू से हर कोई खिंचा-चला आता था। खास तरीके से तैयार किये गये पेड़ों ने बाजार को विशेष पहचान दिलायी और नाम 'पेड़ामल' बाजार पड़ा। अंग्रेजी हुकूमत तक क्षेत्र का डंका खूब बजा। आनंद स्वरूप हलवाई की बालूशाही के जायके के मुरीद आज भी हैं। यहां से सटे साबुनगिरान कैंचीयान, छीपीवाड़ा के इल्मगारों ने पहचान को मुकम्मल किया। आजादी के बाद यहां अशोक की लाट लगी। और भीड़ के कारण जाम न लगे, इसलिए गोल चौराहा बनाया गया। पेड़ामल बाजार का नाम बदलकर 'अशोक बाजार' हुआ, जो लोगों की जुबां पर चढ़ने की जद्दोजहद में ही खो गया। वक्त की आंधी बदलाव की ऐसी बयार लेकर आयी कि किस्से कहानियों में वजूद सिमटकर रह गया। मौजूदा दौर में यहां की दुकानें के लकड़ी के दरवाजे बुलंद इतिहास की ओर इशारा करते हुए याद दिलाते हैं कि कभी यह इलाका शहर की धड़कन हुआ करता था..

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