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फैज़-ऐ-आम,मेरठ.

फैज़-ऐ-आम,मेरठ. साल 1891 में सरधना मिशनरी स्कूल में एक उस्ताद अरबी और फ़ारसी पढ़ाते थे, उनका नाम था मौलाना अब्दुल गनी। मौलाना को अरबी फ़ारसी पर बहुत अच्छी पकड़ हासिल थी, जितना ज़्यादा उन्हें इल्म था उतना ही अच्छा वह बच्चों को पढ़ाना भी जानते थे। एक रोज़ मौलाना ने जुमे की नमाज़ पढ़ने के लिए स्कूल प्रशासन से इजाज़त मांगी लेकिन उनकी इस दरख्वास्त को रद्द कर दिए गया। मौलाना को यह बात काफी नागवार गुज़री और उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। साल 1891 में उन्होंने मेरठ के कोट मोहल्ले में एक मदरसे की स्थापना की जिसे उन्होंने फैज़ ऐ आम नाम दिया। फैज़ ऐ आम लफ्ज़ का सीधा अर्थ होता है ऐसा लाभ या ऐसी बक्शीश जो सर्वसाधारण के लिए हो। मौलान का यह मदरसा भले ही छोटा था लेकिन मौलाना का असल ख्वाब इससे कई गुना बड़ा था। मौलाना की सोच एक ऐसा विद्यालय कायम करने की थी जहां स्वदेशी भावना का सृजन हो सके, धार्मिक स्वतंत्रता व अभिव्यक्ति की आज़ादी मिल सके।मदरसे को बड़ा करने की कोशिश में मौलाना लगे रहे और आखिरकार साल आया 1914 जब इस जगह नीव डली फैज़ ऐ आम स्कूल की। फैज़ ए आम इंटर कॉलेज की संरचना को बनाने में मेरठ शहर के बड़े बड़े लोगों का योगदान रहा। इनमे भैया जी परिवार लालकुर्ती, नादर अली साहब,जली कोठी का परिवार इत्यादि प्रमुख नाम हैं। फैज़ ऐ आम न सिर्फ एक शैक्षणिक संसथान है बल्कि एक आवाज़ है बग़ावत की जो अंग्रेजी परंपरा के खिलाफ उठी। मौलाना अब्दुल गनी साहब को शिक्षा के प्रति उनके योगदान के लिए 'सर सय्यद ऑफ़ मेरठ' कहा जाने लगा। धीरे धीरे फैज़ ऐ आम में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। साल 1926 में फैज़ ऐ आम हाई स्कूल से इंटरमीडिएट में तब्दील हो गया और अब यहाँ बारहवीं तक की पढ़ाई होने लगी। साल 1999 में पूर्व प्रिंसिपल जनाब ग़ुलाम मुहम्मद के प्रयासों द्वारा फैज़ ऐ आम डिग्री कॉलेज की स्थापना हुई जिससे अब एक ही प्रांगण में कक्षा एक से लेकर बारहवीं और उसके बाद हायर एजुकेशन भी उलब्ध थी। फैज़ ऐ आम की संरचना की बात करें तो बदलते वक़्त के बहाव ने इसका रंग फीका कर दिया है लेकिन इस बिल्डिंग की मज़बूती में कोई फ़र्क़ नहीं आया है। फैज़ ऐ आम के आलीशान दरवाज़े जनाब नादर अली द्वारा बनवाये गए थे, जो आज तक अपनी शान औ शौकत के साथ खड़े हैं। बिल्डिंग का सेंट्रल हॉल देखने से ही अपनी लिगेसी खुद बताता है। यहाँ के क्लासरूम, दरीचे, गलियारे और दरवाज़े सब गए वक़्तों की याद दिलाते हैं। हालाँकि फैज़ ऐ आम में नए निर्माण भी हुए है। आज यहाँ एक स्मार्ट क्लास भी मौजूद है जहाँ बच्चे नवीन उपकरणों का उपयोग करते हैं और स्मार्ट स्क्रीन द्वारा बेहतर तालीम हासिल करते हैं। आज के वक़्त में जनाब शारिक मोहम्मद और पूरा विद्यालय प्रशासन फैज़ ऐ आम के जीर्णोद्धार के लिए काम कर रहे है।चाहे वह बच्चों की पढ़ाई का मामला हो या फिर ईमारत की मरम्मत का। भारत की ऐतिहासिक धरोहरें यूँही सलामत रहे यही स्टूडियो धर्मा की मनोकामना है। @haji Ghulam Mohammad @kunwar shariq

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